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पानी प्रणय पक्ष

अरुण तिवारी  आतुर जल बोला माटी से मैं प्रकृति का वीर्य तत्व हूं, तुम प्रकृति की कोख हो न्यारी। इस जगती का पौरुष मुझमें, तुममें रचना का गुण भारी। नर-नारी सम भोग विदित जस, तुम रंग बनो, मैं बनूं बिहारी। आतुर जल बोला माटी से.... न स्वाद गंध, न रंग तत्व, पर बोध तत्व है अनुपम मेरा। भ...
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Apr 22, 2018
पानी प्रणय पक्ष

मैं देवदार का घना जंगल

अरुण तिवारी  मैं देवदार का घना जंगल, गंगोत्री के द्वार ठाड़ा, शिवजटा सा गुंथा निर्मल गंग की इक धार देकर, धरा को श्रृंगार देकर, जय बोलता उत्तरांचल की, चाहता सबका मैं मंगल, मैं देवदार का घना जंगल.... बहुत लंबा और ऊंचा, हिमाद्रि से बहुत नीचा, हरीतिमा पुचकार बनकर, खींचता हूं नीलिमा...
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Apr 22, 2018
मैं देवदार का घना जंगल

रामचरितः एक जीवन संदेश

अरुण तिवारी  धरियो, रामचरित मन धरियो तजियो, जग की तृष्णा तजियो। परहित सदा धर्म सम धरियो, मरियो, मर्यादा पर मरियो।। धरियो, रामचरित.... भाई संग सब स्वारथ तजियो संगिनी बन दुख-सुख सम रहियोे। मातु-पिता कुछ धीरज धरियो सुत सदा आज्ञा-पालन करियो।। धरियो, रामचरित... सेवक सखा समझ मन भजि...
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Mar 25, 2018
रामचरितः एक जीवन संदेश

सीरिया, दुष्काल के चंगुल में

अरुण तिवारी  20 से 25 अक्तूबर, 2015 को टर्की के अंकारा में संयुक्त राष्ट्र संघ का एक सम्मेलन था। यह सम्मेलन, रेगिस्तान भूमि के फैलते दायरे को नियंत्रित करने पर राय-मशविरे के लिए बुलाया गया था। चूंकि, अलवर, राजस्थान के ग्रामीणों के साथ मिलकर तरुण भारत संघ इस विषय में कुछ सफल कर पाया है; लिह...
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Mar 24, 2018
सीरिया, दुष्काल के चंगुल में

आईने में अक्श दिखाती एक बहसः नीति नियोजन में मीडिया की भूमिका

अरुण तिवारी  इण्डिया हैबिटेट सेंटर, लोदी रोड, नई दिल्ली में एक त्रिदिवसीय आयोजन (07-09 फरवरी, 2018) हुआ। इस त्रिदिवसीय 'इवेलफेस्ट - 2018' के दूसरे दिन के अंतिम सत्र की चर्चा का विषय था : प्रमाण आधारित नीति नियोजन में मीडिया की भूमिका। आमंत्रण पाने पर मेरे मन में उठा सबसे पहला सवाल...
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Mar 19, 2018
आईने में अक्श दिखाती एक बहसः नीति नियोजन में मीडिया की भूमिका

मांगें नहीं मानी, तो फिर गंगा अनशन

अरुण तिवारी स्वामी श्री ज्ञानस्वरूप सानंद को उम्मीद थी कि भारतीय जनता पार्टी जब केन्द्र की सत्ता में आयेगी, तो उनकी गंगा मांगें पूरी होंगी। अपना पिछला गंगा अनशन, उन्होने इसी आश्वासन पर तोड़ा था। यह आश्वासन तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह द्वारा आश्वासन दिया गया था। 20 दिसंबर, 2013 को वृं...
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Mar 15, 2018
मांगें नहीं मानी, तो फिर गंगा अनशन

चलो बने कुछ कूची ऐसी, सब चाहें खेलब होरी

अरुण तिवारी लाल रंग सूरज को भैया,  नीरो निर्मल जल को। हरियाली से सभी समृद्धि,  भूरो भूमि तन को। पीत रंग पावन है प्यारे, नारंगी त्याग करन को। रंग गुलाबी नारी सोहे,  और श्याम रंग है प्रभु को। श्वेत रंग में सब रंग छिपे है, यूँ कृष्ण कहे गोरी सों। चलो बने कुछ कूची ऐसी, सब...
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Mar 02, 2018
चलो बने कुछ कूची ऐसी, सब चाहें खेलब होरी

नमामि गंगे: बंद करो भ्रम और भ्रष्टाचार का कारोबार

अरुण तिवारी  अब यह एक स्थापित तथ्य है कि यदि गंगाजल में वर्षों रखने के बाद भी खराब न होने का विशेष रासायनिक गुण है, तो इसकी वजह है इसमें पाये जाने वाली एक अनन्य रचना। इस रचना को हम सभी 'बैक्टीरियोफाॅज' के नाम से जानते हैं। बैक्टीरियोफाॅज, हिमालय में जन्मा एक ऐसा विचित्र ढांचा है कि...
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Feb 07, 2018
नमामि गंगे: बंद करो भ्रम और भ्रष्टाचार का कारोबार

लोकतांत्रिक मज़बूती में मतदाता की भूमिका

अरुण तिवारी एक वोट ने फ्रांस में लोकतांत्रिक सरकार का रास्ता प्रशस्त किया; एक वोट के कारण ही जर्मनी.. नाजी हिटलर के हवाले हो गया। यह एक वोट ही था, जिसने 13 दिन में ही अटल सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। एक वोट ने ही कभी अमेरिका की राजभाषा तय की दी थी। यदि एक वोट सरकार बदल सकती है...
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Jan 25, 2018
लोकतांत्रिक मज़बूती में मतदाता की भूमिका

बालिका हिंसा निषेध की मर्यादा परम्परायें

अरुण तिवारी न सभी परम्परायें बुरी हैं और सभी आधुनिकतायें। कई परम्परायें हैं, जो बालिकाओं के साथ होने वाली यौन हिंसा पर लगाम लाने का कारगर माध्यम मालूम होती हैं। अवध क्षेत्र के कई जि़लों में परंपरा है कि बेटी व बहन से क्रमशः पिता व भाई चरण स्पर्श नहीं करायेंगे। पिता व भाई कितने भी उम्रदराज हो, व...
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Jan 24, 2018
बालिका हिंसा निषेध की मर्यादा परम्परायें

क्यों नहीं रुक रही भ्रूण हत्या और लिंगभेद ?

अरुण तिवारी क़ानूनी तौर पर अभी लिंग परीक्षण, एक प्रतिबंधित कर्म है। ''इसकी आज़ादी ही नहीं, बल्कि अनिवार्यता होनी चाहिए।'' - श्रीमती मेनका गांधी ने बतौर महिला एवम् बाल विकास मंत्री कभी यह बयान देकर, भ्रूण हत्या रोक के उपायों को लेकर एक नई बहस छेङ दी थी। उनका तर्क था कि अनिवार्यता क...
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Jan 24, 2018
क्यों नहीं रुक रही भ्रूण हत्या और लिंगभेद ?